सावित्रीबाई फुले : भारत की पहली महिला शिक्षिका

 सावित्रीबाई फुले : भारत की पहली महिला शिक्षिका                 जनवाद टाइम्स : डॉ महेंद्र कुमार निगम
         
 भारत की महान समाज सुधारक , प्रथम महिला शिक्षिका  कवयित्री सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को नाएगांव तहसील खंडाला जिला सातारा महाराष्ट्र में हुआ. उनके पिताजी का नाम खंडोजी नावसे पाटिल तथा माता का नाम  नाम लक्ष्मी बाई था . उनका विवाह ज्योतिबाराव फूले जी के साथ 1840 में  9 वर्ष की उम्र में हुआ. ज्योतिबा फूले की प्रेरणा से 1845 स्कूली शिक्षा प्राप्त की. महात्मा  ज्योतिबा राव फुले ने  1 जनवरी 1848 मेंं लड़कियों केए प्रथम पाठशाला की शुरुआत की. इस पाठशाला में पहली महिला शिक्षिका वह मुख्य अध्यापिका सावित्रीबााई फुले नियुक्ति  हुई. सावित्रीबाई फुले भारत की प्रथम महिला शिक्षिका के साथ अपने जीवन में एक सफल समाज सेविका और कवयित्री के रूप में ख्याति प्राप्त की. सावित्रीबाई फुले का कविता संग्रह'काव्य फुले '1854 मैं प्रकाशित हुई , 1982 में 'बावन काशी सुबोध रत्नाकर, को प्रकाशित किया।  सावित्रीबाई फुले जिसमें समाज शिक्षिका के रूप में कार्य करना प्रारंभ किया उस समय महाराष्ट्र में पेशवाई अपनी चरम सीमा पर थी. बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने तत्कालीन समाज का परिदृश्य अपनी पुस्तक' Innihilation of Cast' मैं किया है " पेशवाओं के शासनकाल में , महाराष्ट्र में , अछूतों को उस सड़क पर चलने की आज्ञा नहीं थी जिस पर कोई सवर्ण हिंदू चल रहा हो, इनके लिए आदेश था कि अपनी कलाई में या गले में काला धागा बांधे , जिससे इन्हें हिंदू भूल से ना छू ले. पेशवाओं की राजधानी पुणे में तो इन अछूतों के लिए आदेश था कि वे कमर में झाड़ू बांध  कर चले . जिससे इनके पैरों के चिन्ह झाड़ू से मिट जाएं और कोई हिंदूूू इन के पद चिन्हों पर पैर रखकर अपवित्र ना हो जाए, अछूत अपने गले में हांडी बांधकर कर चलें और थूकना हो तो उसी में थूके, भूमि पर पड़े हुए अछूत केे थूक पर किसी हिंदू का पैर पड़ जाने सेेेे वह अपवित्र हो जाएगा.'' 17 उम्र जिस समय शिक्षा की ज्योति जलाई और जब सावित्रीबाई फुले बालिकाओं की शिक्षाा के के लिए विद्यालय जाति तो उन पर गोबर फेंका जाता और गालियों से अपमानित किया जाता फिर भी वे अपने शिक्षण कार्य को नहीं छोड़ती थीं . स्वाभिमान से जीने के लिए महिलाओं तथा बालिकाओं को उन्होंने पढ़ने केे लिए प्रेरित किया. कार्य के रूप में बालिकाओं को उन्होंने प्रथम वरीयता प्रदान की. उन्होंने स्पष्टट रूप से कहा बालिकाको पहले विद्यालय जाना चाहिए 'स्वाभिमान से जीने के लिए पढ़ाई करो , इंसानों का सच्चा गहना शिक्षा है, उन्होंने स्पष्ट लिखा कि 'पहला कार्य पढ़ाई, मिले तो खेल कूद पढ़ाई से फुर्सत मिले तभी करो घर की साफ सफाई , अब पाठशाला जाओ' वे स्पष्ट रूप से लिखती हैं कि
"चलो चले पाठशाला
नहीं अब वक्त गवाना है
ज्ञान विद्या प्राप्त करें
मूढ़ अज्ञानता , गरीबी गुलामी की जंजीरों को चलो खत्म करें."

 मूर्ति पूजा  और  महिलाओं   के आडंबर का  उन्होंने घोर विरोध किया.उन्होंने स्पष्ट लिखा कि मानव और महिला जाति का उत्थान पत्थर पूजने आडंबर करने से नहीं होगा.        "पत्थर को सिंदूर लगाकर और तेल में डुबोकर जिसे समझा जाता है  देवता वह असल  में होता है पत्थर.... यदि  पत्थर पूजन ऐसे होते बच्चे तो फिर नाहक नर नारी शादी क्यों रचाते"


उनका मानना था कि शूद्र और अति शूद्र अज्ञानता ,अंधविश्वास, देव धर्म और रीति-रिवाज के कारण समाज में पिछड़े हुए हैं. स्पष्ट कहां कि "  शूद्र और अति शूद्र अज्ञानता की वजह से पिछड़े. देव धर्म, रीत रिवाज अर्चना के कारण अभाव से गिरकर कंगाल हुए."
सावित्रीबाई फुले जातिभेद, रंगभेद और लिंगभेद के सख्त विरोध में थी.वह सबको पढ़ने लिखने की प्रेरणा देकर जाति तोड़ने की बात करती है :-
"जाओ जाकर पढ़ो-लिखो, बनो आत्मनिर्भर,
बनो मेहनती
काम करो-ज्ञान और धन इकट्ठा करो
ज्ञान के बिना सब खो जाता है, ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते है
इसलिए, खाली ना बैठो, जाओ, जाकर शिक्षा लो
तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है,
इसलिए सीखो और जाति के बंधन तो "
 मराठी काव्य की अग्रदूत माना जाता है। 1852 में उन्होंने बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की. 10 मार्च 1897 को सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया। प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं। एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गया। और इसी कारण से उनकी मृत्यु हुई। महात्मा ज्योतिबा फुले स्वयं एक महान विचारक, कार्यकर्ता, समाज सुधारक, लेखक, दार्शनिक, संपादक और क्रांतिकारी थे। सावित्रीबाई फुले जीवन पर्यंत महात्मा ज्योतिबा राव फूले के साथ समाज सेवा तथा शिक्षा के क्षेत्र में   कंधे से कंधा मिलाकर कार्य किया. आज भी हम लैंगिक समानता  लिए संघर्ष कर रहे हैं संवैधानिक प्राप्त संवैधानिक अधिकार प्राप्त होने के बावजूद भी भारत में महिलाओं की स्थिति आज भी संतोषजनक नहीं है , वहीं अंग्रेजों के जमाने में सावित्रीबाई फुले ने एक दलित महिला होते हुए हिन्दू समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ जो संघर्ष किया वह अभूतपूर्व और बेहद प्रेरणादायक है. ऐसी महान आत्मा को शत-शत नमन.
Dr Mahendra Kumar Nigam
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